Bareilly Pakistan Woman FIR: बरेली में पाकिस्तान से 65 साल पहले आने वाली महिला के खिलाफ केस दर्ज किया गया है। महिला पर बिना नागरिकता भारतीय पहचान पत्र बनवाने का आरोप है। ऑपरेशन खोज में महिला की पहचान सामने आई है।
कृष्णा चौधरी/आसिफ अंसारी: भारत में बसने के 65 साल बाद उत्तर प्रदेश के बरेली की एक महिला पर भारतीय पहचान पत्र रखने का आरोप लगा है। दरअसल, उसकी नागरिकता पाकिस्तान की है। फरहत सुल्ताना 1960 में आठ महीने की बच्ची के रूप में पड़ोसी देश से भारत आई थी। उसके पिता की पाकिस्तान में मृत्यु हो गई थी। उसके साथ उसकी मां और दो बहनें भी थीं। परिवार बरेली में बस गया, जहां बाद में उसकी मां ने दोबारा शादी कर ली। वह भारतीय नागरिक बन गई।
फरहत की बड़ी बहन ने भी शादी के बाद भारतीय नागरिकता हासिल कर ली। लेकिन, फरहत ने कभी भारतीय नागरिकता हासिल नहीं की। भले उसने एक भारतीय नागरिक से शादी की हो। वैध दीर्घकालिक वीजा पर बरेली में रहने के दौरान, हाल ही में उसके पास आधार कार्ड और राशन कार्ड पाया गया। वह भारतीय नागरिक नहीं है। इस कारण इन पहचान पत्रों को नहीं बनवा सकती है।
कई बार किया आवेदन
फरहत ने पुलिस को बताया कि उसने कई बार नागरिकता के लिए आवेदन किया था। 2010 में जब उसने आधार के लिए नामांकन कराया था, तब उसे लगा था कि वह पात्र है। शनिवार को, फरहत पर बीएनएस धारा 318(4) (धोखाधड़ी) और नागरिकता अधिनियम की संबंधित धाराओं के तहत आरोप लगाया गया। इसमें कथित तौर पर नागरिकता दिए बिना भारतीय पहचान दस्तावेज हासिल करने का आरोप था।
2010 में आधार कार्ड बनवाया
एसएसपी (बरेली) अनुराग आर्य ने कहा कि यह कार्रवाई यूपी पुलिस के चल रहे 'ऑपरेशन खोज' के हिस्से के रूप में हुई थी। अवैध दस्तावेजों के कब्जे वाले विदेशी नागरिकों को लक्षित करने वाले अभियान के तहत कार्रवाई हुई। उन्होंने कहा कि यह मामला 11 जून को नियमित गश्त के दौरान सामने आया। इसके बाद मामला दर्ज कराया गया है।
एसएसपी ने कहा कि प्रारंभिक जांच से पता चला है कि उसके पास आधार कार्ड और राशन कार्ड था, जिसमें उसे परिवार की मुखिया के रूप में सूचीबद्ध किया गया था। फरहत ने भारतीय नागरिक शाहिद खलील से शादी की। उसके चार बच्चे हुए। इसमें दो बेटों और चार बेटियों (18-30 वर्ष की आयु के बीच) का पालन-पोषण किया है।
पात्र होने की थी उम्मीद
फरहत से जब पूछा गया कि वह भारतीय पहचान दस्तावेज कैसे प्राप्त करने में सक्षम हुई, तो उसने कहा कि मुझे लगा कि मैं पात्र हूं। जब 2010 में आधार शिविर आयोजित किए गए, तो मैंने भी बाकी लोगों की तरह अपना नाम दर्ज कराया। उसके बाद से यह कार्ड उनके लिए सामान्य जीवन जीने का रास्ता बन गया है। आधार कार्ड के जरिए सिम कार्ड खरीदने और अपने बच्चों का स्कूल में दाखिला कराने में उसे आसानी हुई।
लेखक के बारे मेंराहुल पराशरनवभारत टाइम्स डिजिटल में सीनियर डिजिटल कंटेंट क्रिएटर। पत्रकारिता में प्रभात खबर से शुरुआत। राष्ट्रीय सहारा, हिंदुस्तान, दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर से होते हुए टाइम्स इंटरनेट तक का सफर। डिजिटल जर्नलिज्म को जानने और सीखने की कोशिश। नित नए प्रयोग करने का प्रयास। मुजफ्फरपुर से निकलकर रांची, पटना, जमशेदपुर होते हुए लखनऊ तक का सफर।... और पढ़ें
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