पिछले कुछ महीनों में कच्चे तेल (क्रूड) की कीमतें उम्मीद से कम रही हैं। कच्चे तेल की कीमतें बढ़ रही हैं। लेकिन, फिलहाल इसका कोई बड़ा असर नहीं होगा। सरकार स्थिति पर नजर बनाए हुए है। भारत सीधे ईरान से तेल का आयात नहीं करता है। लेकिन, अपनी तेल की जरूरतों का 80% आयात करता है। ग्लोबल क्रूड ऑयल की कीमतों में किसी भी बड़ी बढ़ोतरी का सीधा असर व्यापार घाटे, राजकोषीय घाटे और थोक महंगाई दर पर पड़ता है।बैंक ऑफ बड़ौदा की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि ईरान बाजार में बड़ा खिलाड़ी नहीं है। उसकी हिस्सेदारी 4% है। लेकिन, होर्मुज जलडमरूमध्य बंद हो जाता है तो जहाजों को वैकल्पिक मार्गों का इस्तेमाल करना होगा। इस जलडमरूमध्य से वैश्विक तेल यातायात का 20% से अधिक गुजरता है। रिपोर्ट में कहा गया है, 'इसलिए, पश्चिम एशिया का बहुत सारा कच्चा तेल रुक सकता है। ऐसी स्थिति में सप्लाई और मांग में आर्टिफिशियल इम्बैलेंस पैदा हो सकता है। इससे कीमतें बढ़ सकती हैं।'
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि 10% की बढ़ोतरी का अर्थव्यवस्था पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा। कारण है कि अर्थव्यवस्था की बुनियादी बातें मजबूत हैं। रिपोर्ट के अनुसार, 'लेकिन यह लंबे समय तक 100 डॉलर से ऊपर रहता है तो इसका मतलब है कि बेस केस अनुमान से लगभग 25% की बढ़ोतरी होगी और इसका इन वैरिएबल पर बड़ा प्रभाव पड़ सकता है।' इसका मतलब है कि अगर तेल की कीमतें लंबे समय तक 100 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर रहती हैं तो भारत की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ सकता है।
पांच महीने के ऊंचे स्तर पर क्रूड
अमेरिका के ईरान पर हमले के बाद ग्लोबल क्रूड की कीमतें पांच महीने के ऊंचे स्तर पर पहुंच गई हैं। ब्रेंट क्रूड की कीमतें 80 डॉलर प्रति बैरल के करीब हैं। 20 जून को भारत के कच्चे तेल की औसत कीमत 77.34 डॉलर प्रति बैरल थी। अप्रैल और जून के बीच औसत तेल की कीमतें 70 डॉलर प्रति बैरल से नीचे रही हैं।विश्लेषकों का यह भी मानना है कि रणनीतिक अहमियत को देखते हुए होर्मुज जलडमरूमध्य लंबे समय तक बंद नहीं रहेगा। कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज की एक रिपोर्ट में कहा गया है, 'लगभग 2 करोड़ बैरल प्रतिदिन तेल और 8.3-8.4 करोड़ टन प्रति वर्ष LNG के साथ होर्मुज जलडमरूमध्य ग्लोबल तेल LNG व्यापार का 27% -20% है। यह आशंका नहीं है कि यह लंबे समय तक प्रभावित होगा।' LNG का मतलब है तरलीकृत प्राकृतिक गैस।
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि अल्पकालिक व्यवधानों से कीमतों में और बढ़ोतरी हो सकती है। लेकिन, जब तक संघर्ष और नहीं बढ़ता है और व्यापक मध्य पूर्व क्षेत्र को प्रभावित नहीं करता है, तब तक मांग या सप्लाई पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा। हां, अगर ईरान-इजरायल संघर्ष रूस-यूक्रेन युद्ध की तरह लंबा चला तो भारत के लिए कई मोर्चों पर चुनौतियां खड़ी हो सकती हैं। यहां समझते हैं कैसे।
ऊर्जा सुरक्षा पर सबसे बड़ा खतरा
कच्चे तेल की कीमतें $100 प्रति बैरल पार गईं तो यह भारत के लिए सबसे बड़ी चिंता होगी। भारत अपनी तेल जरूरतों का लगभग 85-90% आयात करता है। तेल की कीमतें बढ़ने से आयात बिल में भारी उछाल आएगा। इससे व्यापार घाटा बढ़ेगा और रुपये पर दबाव आएगा। कच्चे तेल की कीमतों में उछाल से भारत में महंगाई का विस्फोट होगा। पेट्रोल, डीजल और एलपीजी की कीमतों में बढ़ोतरी से सभी वस्तुओं और सेवाओं की लागत बढ़ जाएगी। इससे देश में भयंकर महंगाई आ सकती है।होर्मुज जलडमरूमध्य का रिस्क तमाम देशों की तरह भारत के लिए भी टेंशन का विषय है। वैश्विक तेल व्यापार का एक बड़ा हिस्सा (और भारत के तेल आयात का 40% के करीब) इसी मार्ग से गुजरता है। अगर ईरान इसे बंद करता है या इसमें सैन्य तनाव बहुत बढ़ जाता है तो तेल की सप्लाई बाधित हो सकती है। इससे कीमतें आसमान छू सकती हैं। हालांकि, भारत ने रूस और अमेरिका जैसे देशों से अपने तेल आयात में विविधता लाई है। फिर भी होर्मुज का बंद होना वैश्विक बाजार को हिला देगा।
व्यापार और निर्यात पर गंभीर असर
भारत का पश्चिम एशिया के देशों (इराक, जॉर्डन, लेबनान, सीरिया, यमन सहित) के साथ बड़ा व्यापार है। ईरान और इजरायल के साथ भी भारत का महत्वपूर्ण व्यापार है (वित्त वर्ष 2024-25 में इजरायल को भारत का निर्यात $2.1 अरब और ईरान को $1.24 अरब था)। लंबा संघर्ष इन व्यापार मार्गों को बाधित करेगा, शिपिंग लागत बढ़ाएगा, बीमा प्रीमियम बढ़ाएगा और सप्लाई चेन को तोड़ देगा।ईरान भारतीय बासमती चावल के सबसे बड़े खरीदारों में से एक है। संघर्ष लंबा खिंचने पर बासमती निर्यात बुरी तरह प्रभावित हो सकता है।
इजरायल-हमास संघर्ष के कारण पहले से ही यमन के हूती विद्रोहियों की ओर से लाल सागर में जहाजों पर हमले हो रहे हैं। इससे भारत का यूरोप और अमेरिका तक का व्यापार प्रभावित हुआ है। अब इस नए संघर्ष से समुद्री व्यापार मार्ग और असुरक्षित हो जाएंगे।